कृषक फसलो के उत्पादन के लिए जैविक कीटनाशकों का करें उपयोग
प्राकृतिक खेती जागरूकता अभियान एवं कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का किया गया आयोजन
शहडोल 24 अगस्त 2025- कृषि विज्ञान केंद्र शहडोल एवं किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग शहडोल के संयुक्त तत्वाधान में ग्राम बरमनिया में प्राकृतिक खेती जागरूकता अभियान एवं कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक सह प्रमुख डॉ. मृगेंद्र सिंह ने किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए बीजामृत, जीवामृत, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र, अग्निस्त्र, दशपर्णी की तैयारी और अनुप्रयोग के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि कई दशकों से फसलों के उत्पादन वृद्धि हेतु रसायनों जैसे उर्वरकों, कीटनाशक एवं खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग बढ रहा है जो कि मानव समाज व पर्यावरण दोनों के लिए अत्यन्त हानिकारक है। इसी वजह से वर्तमान में प्राकृतिक एवं जैविक खेती पर ज्यादा बल दिया जा रहा है। किसान की बोई गई फसलों की नर्सरी को भूमि जनित कीट, रोग और खरपतवार से भारी नुकसान होता है। यह भूमि जनित कीटं, रोग और खरपतवार खेत की मिट्टी में पहले से ही पड़े रहते है और अनुकूल मौसम मिलते ही खेत में लगी फसलों को नुकसान पहुंचाते है। अधिकतर किसान जमीन मे छिपे इन रोगों, कीटों से निपटने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। इससे मिट्टी के स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण और जीव-जंतु पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. ब्रजकिशोर प्रजापति ने किसानों को बताया कि रासायनिक कीटनाशकों के दुष्यप्रभाव से बचने एवं फसल सुरक्षा के लिए अपनाये जाने वाले उपायों में स्टिकी ट्रैप के साथ-साथ फेरोमोन ट्रैप खासा उपयोगी तथा प्रभावशाली पाया गया है। ये रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में बेहद सस्ता होता है। स्टिकी ट्रैप के इस्तेमाल से फसलों को कीटों से होने वाले नुकसान में 40 से 50 प्रतिशत तक कमी आ जाती है। स्टिकी ट्रैप कई तरह की रंगीन शीट होती हैं जो फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए खेत में लगाई जाती है। हर कीट किसी विशेष रंग की ओर आकर्षित होता है। अब अगर उसी रंग की शीट पर कोई चिपचिपा पदार्थ लगाकर फसल की ऊंचाई से करीब एक फीट और ऊंचे पर टांग दिया जाए तो कीट रंग से आकर्षित होकर इस शीट पर चिपक जाता है। फिर यह फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं।
डॉ. प्रजापति ने यह भी बताया कि जैविक कीटनाशकों में ‘एक साधे सब सधे’ वाली खूबियाँ होती हैं। इसका मनुष्य, मिट्टी, पैदावार और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और फसल के दुश्मन कीटों तथा बीमारियों से भी कारगर रोकथाम हो जाती है। इसीलिए, जब भी कीटनाशकों की जरूरत हो, तो सबसे पहले जैविक कीटनाशकों को ही इस्तेमाल करना चाहिए। ये पर्यावरण संरक्षण के साथ फसल के दुश्मनों का सफाया करने में बेहद कारगर साबित होते हैं। सभी तरह के रस चूसने वाले कीट जैसे तेला, चेपा आदि के नियंत्रण के लिए नीमास्त्र एवं दशपर्णी अर्क का प्रयोग किया जाता हैं। आत्मा परियोजना से बी टी एम गोहपारू श्री तारकेश्वर एवं कुमारी आयुषी ने कृषकों को जानकारी दी कि मिट्टी की शक्ति और उसकी स्थिति के बारे में हमें तभी जानकारी हो पाएगी, जब हम उसका समय-समय पर परीक्षण कराते रहें।
कृषि में मृदा परीक्षण या भूमि की जांच एक मृदा के किसी नमूने की रासायनिक जांच हैं जिससे भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा के बारे में जानकारी मिलती हैं। इस परीक्षण का उद्देश्य भूमि की उर्वरकता मापना तथा यह पता करना है कि उस भूमि में कौन से तत्वों की कमी है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड जिस पर निम्न जानकारी जैसे मृदा का पी.एच. मान, ई.सी., कार्बनिक पदार्थ, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर, जिंक, लोहा, कॉपर, मैग्नीज, बोरान, अंकित कर कृषकों को उपलब्ध कराया जाता है।
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